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ग़ज़ल
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न ब'अद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
दफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता-सामाँ होंगे
फ़िल्स माही के गुल-ए-शम-ए-शबिस्ताँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अपनी आँखें दफ़्न करना थीं ग़ुबार-ए-ख़ाक में
ये सितम भी हम पे ज़ेर-ए-आसमाँ होना ही था
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
ज़िंदगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
चप्पे चप्पे पे हैं याँ गौहर-ए-यकता तह-ए-ख़ाक
दफ़्न होगा कहीं इतना न ख़ज़ाना हरगिज़