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ग़ज़ल
काश इस बार मैं दरियाओं से ज़िंदा लौटूँ
क्यूँकि ये ख़ाक तो मिट्टी में दबानी है मुझे
शाहनवाज़ अंसारी
ग़ज़ल
भिक्षु-दानी, प्यासा पानी, दरिया सागर, जल गागर
गुलशन ख़ुशबू, कोयल कूकू, मस्ती दारू, मैं और तू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
वो तप-ए-इश्क़-ए-तमन्ना है कि फिर सूरत-ए-शम्अ'
शो'ला ता-नब्ज़-ए-जिगर रेशा-दवानी माँगे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वा'दा आने का वफ़ा कीजे ये क्या अंदाज़ है
तुम ने क्यूँ सौंपी है मेरे घर की दरबानी मुझे