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ग़ज़ल
शब-ए-तारीक ने पहलू दबाया रोज़-ए-रौशन का
ज़हे क़िस्मत मिरे बालीं पे तेरा जल्वागर होना
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
दबाया जब रक़ीबों को तो बोले यार क्या कहना
जो अर्बाब-ए-हया हैं उन को ग़ैरत आ ही जाती है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
मोहब्बत आग है ऐसी जो पानी से नहीं बुझती
ज़माने ने अबस शो'ले को मुट्ठी में दबाया था