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ग़ज़ल
ब-रंग-ए-बाद-ए-सबा गुल खिलाए हैं क्या क्या
मिरे ही दिल ने सितम मुझ पे ढाए हैं क्या क्या
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-बाद-ए-सबा तेरे कूचे में ऐ जान-ए-जाँ आए हैं
चंद साअत रहेंगे चले जाएँगे सर-गराँ आए हैं
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
सहरा में जो दीवाने से बाद-ए-सबा उलझी
हर मौज-ए-गुल-ए-तर से वो ज़ुल्फ़-ए-दोता उलझी
जुंबिश ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कुछ फूल थे कुछ अब्र था कुछ बाद-ए-सबा थी
कुछ वक़्त था कुछ वक़्त से बाहर की फ़ज़ा थी