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ग़ज़ल
दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो
जैसे आए दबे पाँव सैल-ए-बला शहर वालो सुनो
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
शौकत परदेसी
ग़ज़ल
मुहीत-ए-हुस्न जो अब दम-ब-दम चढ़ाव पे है
चला है घर से अकड़ता बड़े ही ताव पे है