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ग़ज़ल
दयार-ए-हिज्र में ख़ुद को तो अक्सर भूल जाता हूँ
तुझे भी मैं तिरी यादों में खो कर भूल जाता हूँ
असलम कोलसरी
ग़ज़ल
बिल-आख़िर हम भी शब भर जागते रहने से बाज़ आए
दयार-ए-हिज्र में कुछ वस्ल का सामाँ भी होना था
नश्तर ख़ानक़ाही
ग़ज़ल
दयार-ए-दूर में मैं तो नहीं आता हूँ याद उन को
न जाने वो मुझे फिर क्यों बराबर याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
सबा के बस में नहीं अब पयाम-ए-सुब्ह-ए-विसाल
दयार-ए-हिज्र के ज़िंदानियो हुआ सो हुआ
प्रेम कुमार नज़र
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
न रहनुमा है न मंज़िल दयार-ए-उल्फ़त में
क़दम उठाते ही ख़िज़्र-ए-शिकस्ता-पा तो मिला