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ग़ज़ल
देखना ऐ 'दर्द' हो जाएँगे दिल कितने असीर
ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ आज वो खोले हुए महफ़िल में है
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
ग़म जुदाई का शब-ए-फ़ुर्क़त में दिल पर हमनशीं
दर्द बन कर छाएगा मैं ने कभी सोचा न था
दर्द सिरोंजी
ग़ज़ल
वो अब हमारे पहलू में बैठे हुए हैं 'दर्द'
डर ये है मर न जाएँ कहीं इस ख़ुशी से हम
नरेश कुमार दर्द
ग़ज़ल
भूल जा ख़ुश रह अबस वे साबिक़े मत याद कर
'दर्द'! ये मज़कूर क्या है आश्ना था या न था
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
इक ज़रा सी और फ़ुर्सत ऐ फ़रेब-ए-दर्द-ए-दिल
गुलशन-ए-हस्ती में गुल बन कर महकना है मुझे