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ग़ज़ल
अहल-ए-दानिश की निगाहों में हदफ़ कोई नहीं
सर तो अब भी है मगर संग-ब-कफ़ कोई नहीं
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल
भरोसा कर रहे हो उन हसीनों पर मगर 'दानिश'
ये अंदाज़-ए-हसीं उन का बदल जाए तो क्या होगा
दानिश फ़राही
ग़ज़ल
यहाँ इंसाफ़ होना ग़ैर-मुमकिन है मियाँ 'दानिश'
ये मुंसिफ़ हक़-बयानी को ज़रा मुश्किल समझता है
हनीफ़ दानिश इंदौरी
ग़ज़ल
शर्म से ख़ुर्शीद अपना मुँह छुपा लेगा कहीं
रोज़-ए-रौशन में भी 'दानिश' रात ढा ली जाएगी