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ग़ज़ल
रहज़नों में नाज़-ओ-ग़म्ज़ा की ये जिंस-ए-दीन-ओ-दिल
जूँ मता-ए-बुर्दा आख़िर हम-दिगर बट जाएगी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले