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ग़ज़ल
इश्क़ के हिज्जे भी जो न जानें वो हैं इश्क़ के दावेदार
जैसे ग़ज़लें रट कर गाते हैं बच्चे स्कूल में
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
तिरी साँसों की लय में जब तलक शामिल मिरी लय है
तुम्हारा कौन हो सकता है दा'वेदार शहज़ादी
आकाश अथर्व
ग़ज़ल
हुस्न के जल्वे आम हैं लेकिन ज़ौक़-ए-नज़ारा आम नहीं
इश्क़ बहुत मुश्किल है लेकिन इश्क़ के दा'वेदार बहुत
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
यहाँ जो भी है सब बातिल नज़र का एक धोका है
तो फिर किस बात पर हम यूँही दा'वेदार होते हैं
आईरीन फ़रहत
ग़ज़ल
इस दुनिया में यूँ तो मिले हैं प्यार के दा'वेदार बहुत
मुश्किल में काम एक न आया देखे हम ने यार बहुत
तुफ़ैल होशियारपुरी
ग़ज़ल
जहाँ सच की पज़ीराई के दा'वेदार हैं सब
उसी बज़्म-ए-सुख़न में बोलना दुश्वार क्यूँ है
याक़ूब तसव्वुर
ग़ज़ल
नहीं है बहर-ओ-बर में ऐसा मेरे यार कोई
कि जिस ख़ित्ते का मिलता हो न दावेदार कोई
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
ग़ज़ल
हर एक जाम-ए-मय-ए-गुल-गूँ का दा'वेदार बन बैठा
तिरी नीची नज़र उठते ही ईमानों पे क्या गुज़री