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ग़ज़ल
गुज़रे हुए दिलकश लम्हों की भूली हुई याद ऐसी आई
जैसे कोई पीतम परदेसी सोते में अचानक आ जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
ग़ज़ल
हासिल-ए-वस्ल से दिलकश है मियाँ ख़्वाहिश-ए-वस्ल
हिज्र दरपेश जो है, उस पे गुज़ारा कर लें
राना आमिर लियाक़त
ग़ज़ल
'फ़राज़'-ओ-'फ़ैज़' के दिलकश कलाम को पढ़ कर
मोहब्बतों का तरीक़ा सिखा रहा था मैं