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ग़ज़ल
दोज़ख़ पे क्यूँ न हो दिल-ए-'बीमार' ताना-ज़न
आतिश से इश्क़ की है पतिंगा यहाँ गिरा
शैख़ अली बख़्श बीमार
ग़ज़ल
चलते हैं कू-ए-यार में है वक़्त-ए-इम्तिहाँ
हिम्मत न हारना दिल-ए-बीमार देखना