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ग़ज़ल
'फ़िगार' एहसास-ए-दिल में हर तरफ़ काँटे ही काँटे हैं
यही तस्कीन गुलशन में बहार आने से होती है
फ़िगार उन्नावी
ग़ज़ल
ग़मगीं हैं दिल-फ़िगार हैं मेरे यहाँ के लोग
दामान-ए-तार-तार हैं मेरे यहाँ के लोग
ओवेस अहमद दौराँ
ग़ज़ल
जाँ भी ब-जाँ है हिज्र में और दिल-फ़िगार भी
तर है मिज़ा भी अश्क से जेब भी और कनार भी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
चमन में ख़ार ही क्या गुल भी दिल-फ़िगार मिले
फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-रंगीनी-ए-बहार मिले
जाफ़र अब्बास सफ़वी
ग़ज़ल
मजनूँ के मिस्ल बन के हज़ारों सितम सहे
फ़रियाद तेरे आगे करे दिल-फ़िगार क्या
अब्दुल क़ादिर अहक़र अज़ीजज़ि
ग़ज़ल
कोई शक्ल दे मुझे ऐ मुसव्विर-ए-दिल-फ़िगार
मुझे कैनवस पे उतार आ मुझे वक़्त दे
ख़्वाजा तारिक़ उस्मानी
ग़ज़ल
बढ़ गई। हद से मिरी 'बेचैन' अब बेचैनियाँ
काम आख़िर मेरा ख़ून-ए-दिल-फ़िगार आ ही गया