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ग़ज़ल
जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उल्फ़त के नए दीवानों को किस तरह से कोई समझाए
नज़रों पे लगी है पाबंदी दीदार की बातें करते हैं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
होशयारों में तो इक इक से सिवा हैं 'अकबर'
मुझ को दीवानों में लेकिन कोई तुझ सा न मिला
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
बहार-ए-गुल में दीवानों का सहरा में परा होता
जिधर उठती नज़र कोसों तलक जंगल हरा होता
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
हमें ये फ़िक्र उन की अंजुमन किस हाल में होगी
उन्हें ये ग़म कि उन से छुट के दीवानों पे क्या गुज़री
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
वहशतें बढ़ गईं हद से तिरे दीवानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हम से दीवानों के बिन दुनिया सँवरती किस तरह
अक़्ल के आगे है क्या दीवानगी ये मत कहो