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ग़ज़ल
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
ग़ज़ल
फ़र्क़ ये है नुत्क़ के साँचे में ढल सकता नहीं
वर्ना जो आँसू है दुर्र-ए-शाह-वार-ए-नग़्मा है
गोपाल मित्तल
ग़ज़ल
कोई है जो यहाँ इस कर्बला में जान पर खेले
कोई है जो यहाँ अब सूरत-ए-शाह-ए-नजफ़ निकले
अंजुम रूमानी
ग़ज़ल
वही लफ़्ज़ हैं दुर्र-ए-बे-बहा मिरे वास्ते
जिन्हें छू गई हो तिरी ज़बाँ मिरे मेहरबाँ
बुशरा हाश्मी
ग़ज़ल
अब तो जोश-ए-आरज़ू 'तस्लीम' कहता है यही
रौज़ा-ए-शाह-ए-नजफ़-अल्लाह दिखलाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
तेरे दाँतों के तसव्वुर से न था गर आब-दार
जो बहा आँसू वो दुर्र-ए-बे-बहा क्यूँकर हुआ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
बा'द इस्तिग़राक़ हाथ आई है बस मतलब की बात
डूब कर गहरे में दुर्र-ए-बे-बहा पाते हैं लोग
माहिर बिलग्रामी
ग़ज़ल
मैं उसी कोह-सिफ़त ख़ून की इक बूँद हूँ जो
रेग-ज़ार-ए-नजफ़ ओ ख़ाक-ए-ख़ुरासाँ से मिला
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
उस शो'ला-रू के आरिज़-ए-रंगीं के अक्स ने
चमकाई गोश्वारा-ए-दुर्र-ए-अदन में आग
सिपाह दार ख़ान बेगुन
ग़ज़ल
ग़ाज़ा ब-रू मिसी ब-लब पान ब-दहन हिना ब-कफ़
सिल्क-ए-दुर्र-ए-अदन बसर तुर्रा-ए-अम्बरीं ब-दोश