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ग़ज़ल
एक भी ख़्वाहिश के हाथों में न मेहंदी लग सकी
मेरे जज़्बों में न दूल्हा बन सका अब तक कोई
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
इक गाँव में दो बारातें शायद दूल्हा बदल गया है
मेरी आँख में तेरा आँसू तेरी आँख में मेरा आँसू
बशीर बद्र
ग़ज़ल
शर्मीले हैं दूल्हे राजा ये मालूम न वो मालूम
करते हैं दूल्हन से पर्दा ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
अब जाने दूल्हा-भाई में क्या कीड़े पड़ गए
जाने को मनअ' करते हैं बाजी के घर मुझे
साजिद सजनी लखनवी
ग़ज़ल
हिरन सब हैं बराती और दिवाना बन का दूल्हा है
ब-हर ख़िलअत कूँ उर्यानी की फिरता है बना छैला