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ग़ज़ल
ये ख़ुदा की देन अजीब है कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तू ने चाहा वो मिल गया जिसे मैं ने चाहा मिला नहीं
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ये दुख-दर्द की बरखा बंदे देन है तेरे दाता की
शुक्र-ए-नेमत भी करता जा दामन भी फैलाता जा
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
कभी कोई वादा वफ़ा न कर यूँही रोज़ रोज़ बहाना कर
तू फ़रेब दे के चला गया तिरा ए'तिबार नहीं गया
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
वैसे तो सब ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश सच्चे हैं लेन-देन के
मिट्टी का जिस पे क़र्ज़ था उस ने अदा नहीं किया
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
तेरी जुदाई ग़म का आलम ये सब है तक़दीर की देन
रो रो कर हम अश्क बहाएँ ऐसी कोई बात नहीं
सय्यद आरिफ़ अली
ग़ज़ल
कहा है किस ने तुम से चूमो-चाटो जा के पत्थर को
तुम्हारे ज़ाहिदो अब देन ओ ईमाँ का ख़ुदा हाफ़िज़
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो!!!
ये तो उस की देन है जिस को चाहे वो महकाए
फ़रीहा नक़वी
ग़ज़ल
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
देन किस निगह की है किन लबों की बरकत है
तुम में 'जाफ़री' इतनी शोख़ी-ए-बयाँ क्यूँ है