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ग़ज़ल
'नबील' इख़्लास बस देहात के लोगों का शेवा है
किसी भी शहर की मिट्टी में ये पौदा नहीं होता
अनस नबील
ग़ज़ल
चलता पुर्ज़ा बनने वाले देखा तो पसमाँदा थे
ऐसे वैसे शहरों को जब तब चाहूँ देहात करूँ
शब्बीर अहमद क़रार
ग़ज़ल
इक धनवान की कार के नीचे ये किस का देहांत हुआ
एक भिकारी का बच्चा था छोड़ो किस को चिंता है