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ग़ज़ल
पत्ते की खड़क से भी लरज़ता है मिरा दिल
साए से भी ख़तरा मुझे दौरान-ए-सफ़र है
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
लो आगे आख़िर मंज़िल है अब शौक़ का 'आलम मत पूछो
दौरान-ए-सफ़र में क्या गुज़री पायान-ए-सफ़र में कौन कहे