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ग़ज़ल
कहीं लाल-ओ-गुहर पैदा कहीं शम्स-ओ-क़मर पैदा
तजल्ली आप कर लेती है हर-सू जल्वा-गर पैदा
अमजद अली ग़ज़नवी
ग़ज़ल
आजिज़ मातवी
ग़ज़ल
ऐ बे-ख़बर इस क़ल्ब-ए-मुनव्वर के मुक़ाबिल
ये रौशनी-ए-लाल-ओ-गुहर शम्स-ओ-क़मर क्या
अमजद अली ग़ज़नवी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-ख़ैर हसीनों में है कि वक़्त-ए-ख़िराम
ज़मीं को मादन-ए-लाल-ओ-गुहर बनाते हैं