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ग़ज़ल
आँखें मूँद किनारे बैठो मन के रक्खो बंद किवाड़
'इंशा'-जी लो धागा लो और लब सी लो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अब दूर होते जा रहे हैं 'रीत' हम से रिश्ता सब
धागा कोई अब चाहिए रिश्ता पिरोने के लिए
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
कुमार पाशी
ग़ज़ल
तू कच्चे सूत का धागा अबस बल पेच खाता है
ये सब वहम-ए-ग़लत है और क़ुसूर-ए-फ़हम तेरा है