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ग़ज़ल
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
धुएँ से आग के इक अब्र-ए-दरिया-बार हो पैदा
'असद' हैदर-परस्तों से अगर होवे दो-चार आतिश
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जान जाते हैं पता 'आतिश' धुएँ से सब मिरा
सोचता रहता हूँ क्या कोई मफ़र मेरा भी है
स्वप्निल तिवारी
ग़ज़ल
उस की आदत है घिरे रहना धुएँ के जाल में
उस के सारे रोग इक अंधी परेशानी के हैं