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ग़ज़ल
सुराही गर्दन वो आबगीना फिर आगे सीना भी जूँ नगीना
भरा है जिस में तमाम कीना कि जूँ नगीना दमक रहा है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कंकरों को जड़ लिया लोगों ने सरके ताज में
ठोकरों में है नगीना इस लिए बेचैन हूँ