आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "नज़राना"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "नज़राना"
ग़ज़ल
वही दिल है जो हुस्न-ओ-इश्क़ का काशाना हो जाए
वो सर है जो किसी की तेग़ का नज़राना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
यार-ए-नुक्ता-दाँ किधर है फिर चलें उस के हुज़ूर
ज़िंदगी को दिल कहें और दिल को नज़राना कहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
कहाँ का तूर मुश्ताक़-ए-लक़ा वो आँख पैदा कर
कि ज़र्रा ज़र्रा है नज़्ज़ारा-गाह-ए-हुस्न-ए-जानाना
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
कोई शय तश्त में हम सर से कम क़ीमत नहीं रखते
सो अक्सर हम से नज़राना तलब होता ही रहता है