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ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में फूल नहीं हैं ख़ार बहुत हैं 'हस्ती' जी
प्यार का दुश्मन सारा ज़माना पहले भी था आज भी है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
नब्ज़-ए-हस्ती की भी रफ़्तार को पहचान ज़रा
दिल धड़कने की तिरे कोई सदा हूँ मैं भी
सय्यद नदीम कमाल
ग़ज़ल
गर्दिश-ए-जहाँ में भी कुछ असर है लग़्ज़िश का
और नब्ज़-ए-हस्ती भी कुछ रुकी रुकी सी है
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
ग़ज़ल
तिरे अनवार से है नब्ज़-ए-हस्ती में तड़प पैदा
कहीं सारा निज़ाम-ए-काएनात इक दिल न बन जाए
ताजवर नजीबाबादी
ग़ज़ल
किसी दिन मुझ को ले डूबेगा हिज्र-ए-यार का सदमा
चराग़-ए-हस्ती-ए-मौहूम होगा गुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
हर तरफ़ सेहन-ए-चमन में कहती फिरती है नसीम
गुल से हँसती खिलखिलाती मोतिया पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सफ़र जारी है सदियों से हमारा नब्ज़-ए-आलम में
निगाहों से ज़माने की मगर रू-पोश रहते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
अब वही नज़रें जो देती थीं शुऊ'र-ए-हस्ती
हम को ना-कर्दा गुनाही की सज़ा देती हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
नाजिर अल हुसैनी
ग़ज़ल
जूँ पंच-शाख़ा तू न जला उँगलियाँ तबीब
रख रख के नब्ज़-ए-आशिक़-ए-तफ़्ता-जिगर पे हाथ
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तड़प कर शिद्दत-ए-ग़म से जब उन का नाम लेते हैं
ये वहशी नब्ज़-ए-रफ़्तार-ए-दो-'आलम थाम लेते हैं
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
इसी तश्ख़ीस पर इतरा रहा था एक मुद्दत से
मसीहा देख नब्ज़-ए-बहर-ओ-बर कुछ और कहती है