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ग़ज़ल
अब अश्क तो कहाँ है जो चाहूँ टपक पड़े
आँखों से वक़्त-ए-गिर्या मगर ख़ूँ टपक पड़े
ज़हूरुल्लाह बदायूनी नवा
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
नवा-ए-शौक़ में शोरिश भी है क़रार भी है
ख़िरद का पास भी ख़्वाबों का कारोबार भी है
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
निज़ाम-ए-वक़्त का अब ख़ूँ निचोड़ना होगा
कि संग-ए-सख़्त अदाओं की अंजुमन में है
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
ग़ज़ल
चलते हैं कू-ए-यार में है वक़्त-ए-इम्तिहाँ
हिम्मत न हारना दिल-ए-बीमार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बेदारियों में आईं नज़र ये तो है मुहाल
मख़्फ़ी हैं वक़्त-ए-ख़्वाब ब-दस्तूर पिंडलियाँ
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
नाज़ुक कमर वो ऐसे हैं वक़्त-ए-ख़िराम-ए-नाज़
ज़ुल्फ़ें जो खोलते हैं तो बल खाए जाते हैं