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ग़ज़ल
आँख पड़ती है हर इक अहल-ए-नज़र की तुम पर
तुम में रूप ऐ गुल ओ नसरीन ओ समन किस का है
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
बाग़बानों को बताओ गुल-ओ-नस्रीं से कहो
इक ख़राब-ए-गुल-ओ-नसरीन-ए-बहार आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
क्या अंधा विश्वास था ऐ 'नसरीन' वो मुझ को मना लेगा
हर बंधन से छूट गया वो हाए क्यूँ उस से रूठी मैं
नसरीन नक़्क़ाश
ग़ज़ल
महक उठती हैं जिस्म-ओ-जाँ की अफ़्सुर्दा फ़ज़ाएँ भी
जब आता है पिरो कर वो गुल-ए-नसरीन आँखों में
सय्यद शीबान क़ादरी
ग़ज़ल
वो करे तज्ज़िया-ए-मौसम-ए-गुल जिस की नज़र
बज़्म-ए-गुल में हद-ए-नसरीन-ओ-समन से गुज़रे
हुरमतुल इकराम
ग़ज़ल
हम तो चमन चमन गए दिल न शगुफ़्ता हो सका
नसरीन-ओ-नस्तरन है क्या लाला है क्या गुलाब क्या
सूफ़िया अनजुम ताज
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ में देख लेना वादी-ए-पुर-ख़ार से बद-तर
चमन भी है बहार-ए-लाला-ओ-नसरीन-ओ-सोसन तक