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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मिन्नत-ए-क़ासिद कौन उठाए शिकवा-ए-दरबाँ कौन करे
नामा-ए-शौक़ ग़ज़ल की सूरत छपने को दो अख़बार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दार पर चढ़ कर लगाएँ नारा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम
सब हमें बाहोश समझें चाहे दीवाना कहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हू का आलम है कोई नारा-ए-मस्ताना-ए-हक़
क्या तिरी बज़्म-ए-वफ़ा में कोई इतना भी नहीं
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
ना'रा-ए-अल-इश्क़-ए-रब्बी लब पे हर ज़र्रे के है
तूर-ए-दिल की वादियों में किस ने जल्वा कर दिया
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
दम अपना घुट के कब का हिज्र-ए-जानाँ में निकल जाता
मदद-गारी-ए-शोर-ए-नारा-ए-यारब से जीते हैं
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
नारा-ए-दार-ओ-रसन हादिसा-ए-कौन-ओ-मकाँ
ख़ुफ़्ता-जानों के लिए ख़्वाब-ए-गिराँ है कि नहीं
कलीम अहमदाबादी
ग़ज़ल
हर बुल-हवस को दावा-ए-मंसूर हो गया
अब जाँ-ब-लब हैं ना'रा-ए-दार-ओ-रसन से हम
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
ख़ूँ शहीदों का रवाँ है जंग के मैदान में
और ग़ाज़ी की ज़बाँ पर नारा-ए-पुर-जोश है
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
ग़ज़ल
राहिल हूँ मुसलमान ब-साद-नारा-ए-तकबीर
ये क़ाफ़िला ये बाँग-ए-दरा मेरे लिए है