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ग़ज़ल
पस-ए-पर्दा भी लैला हाथ रख लेती है आँखों पर
ग़ुबार-ए-ना-तवान-ए-क़ैस जब महमिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
न खींच तेग़ तू 'एहसान' ना-तवान पे आह
मियाँ ये ज़ोर किसी का सदा नहीं रहता