आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "निगार"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "निगार"
ग़ज़ल
किसे ज़िंदगी है अज़ीज़ अब किसे आरज़ू-ए-शब-ए-तरब
मगर ऐ निगार-ए-वफ़ा तलब तिरा ए'तिबार कोई तो हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ
लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
नक़्श-ओ-निगार-ए-ग़ज़ल में जो तुम ये शादाबी पाओ हो
हम अश्कों में काएनात के नोक-ए-क़लम को डुबो लें हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
दिल मिरा बैठा है ले कर फिर मुझी से वो निगार
पूछता है हाथ में मेरे बता क्या चीज़ है