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ग़ज़ल
मुड़ के देखूँ तो अक़ब में कुछ नज़र आता नहीं
सामने भी गुम निशान-ए-रह-गुज़र होने को है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
मिरी हमसरी का ख़याल क्या मिरी हम-रही का सवाल क्या
रह-ए-इश्क़ का कोई राह-रौ मिरी गर्द को भी न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
किस से मिलते हैं कहाँ जाते हैं क्या करते हैं
वसवसे दिल में ये रह रह के उठा करते हैं
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी
लहू में ज़ुल्मत-ए-शब उँगलियाँ भिगोने लगी
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वाह-रे इंसाफ़ इतना भी न वाँ पूछा गया
ये क़ुसूर-ए-हुस्न है या अस्ल में तासीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मिरे हाथ आ गया 'परवीं' अदू के नाम का ख़त था
गिरा था रह में जो दस्त-ए-बुत-ए-बे-पीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
बोलूँ तो सर से पा तक हसरत की दास्ताँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़ख़्म मिलते हैं इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल मिलता नहीं
वज़-ए-क़ातिल रह गई रस्म-ए-मसीहाई गई