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ग़ज़ल
न हो जाए कहीं ज़ेर-ओ-ज़बर ये आईना-ख़ाना
निगाह-ए-'शौक़' से जल्वों की हैरानी नहीं जाती
शौक़ बिजनौरी
ग़ज़ल
फ़ुर्सत मिले कभी तो शब-ए-ग़म से पोंछना
टूटे हैं चश्म-ए-'शौक़' से तारे कहाँ कहाँ