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ग़ज़ल
वफ़ा ईसार क़ुर्बानी वहाँ अब लोग क्या जानें
जहाँ नीलाम होते ज़र्फ़-ओ-ख़ुद्दारी की बातें हैं
हिना रिज़्वी
ग़ज़ल
कहाँ मुझ को मयस्सर मिस्र का बाज़ार आएगा
ख़ुद अपनी ज़ात में नीलाम हो जाने से डरता हूँ
अली मुज़म्मिल
ग़ज़ल
वो बूढ़ा शख़्स अपनी जान तक नीलाम कर बैठा
मगर अफ़्सोस उस के घर की दुश्वारी नहीं जाती
मोहम्मद अली साहिल
ग़ज़ल
बहुत छोटा सा दिल और इस में इक छोटी सी ख़्वाहिश
सो ये ख़्वाहिश भी अब नीलाम करने के लिए है
अशफ़ाक़ हुसैन
ग़ज़ल
'प्रेम' यूसुफ़ तो नहीं लेकिन ब-अंदाज़-ए-दिगर
हो चुका है बार-हा नीलाम तेरे शहर में