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ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दामन को बचा भी लें शायद सहरा के नुकीले काँटों से
गुलशन के मगर गुल-हा-ए-शरर-अंदाम से बचना मुश्किल है
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
क़दम क़दम पर फ़रेब पग पग नुकीले काँटे
चमन तक आने की अब वो आसानियाँ कहाँ हैं