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ग़ज़ल
हर गली नुक्कड़ नगर अब बन चुका मक़्तल यहाँ
बे-गुनाहों की लहू तर चीख़ती पोशाक है
ए.आर.साहिल "अलीग"
ग़ज़ल
अज़्म शाकरी
ग़ज़ल
पुराने नुक्कड़ पे बैठे बैठे जवान सिगरेट पी रहे थे
पुराने नुक्कड़ पे बैठे बैठे फ़क़ीर माला बना रहा था