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ग़ज़ल
उस नगरी के बाग़ और मन की यारो लैला न्यारी है
पंछी अपने सर पे उठा कर अपने बसेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
इस नगरी के बाग़ और बन की यारो लीला न्यारी है
इस में पंछी सर पे उठा कर अपने बसेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
याद के फेर में आ कर दिल पर ऐसी कारी चोट लगी
दुख में सुख है सुख में दुख है भेद ये न्यारा भूल गया
मीराजी
ग़ज़ल
उंसुर है ख़ैर ओ शर का हर इक शय में यूँ निहाँ
हर शम'-ए-बज़्म नूरी-ओ-नारी है जिस तरह
नातिक़ लखनवी
ग़ज़ल
मुलाइम पेट मख़मल सा कली सी नाफ़ की सूरत
उठा सीना सफ़ा पेड़ू अजब जोबन की नारी है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
देखा न तुझे ऐ रब हम ने हाँ दुनिया तेरी देखी है
सड़कों पर भूके बच्चे भी कोठे पर अब्ला नारी भी
आज़िम कोहली
ग़ज़ल
अम्न की ताक़त को कुचला सच को रुस्वा कर दिया
दुश्मनों के चार-दिन में वारे-न्यारे हो गए
गुलज़ार देहलवी
ग़ज़ल
उस दिन से अपने वारे-न्यारे ही हो गए
जिस दिन से तेरे कूचा-ए-उल्फ़त में पड़ गए
काशिफ़ अदीब मकनपुरी
ग़ज़ल
'अंजुम' प्यार जिसे कहते हैं उस के ढंग न्यारे हैं
चुप में है सुख चैन न कोई राहत क़ील-ओ-क़ाल में है