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ग़ज़ल
पंडित जी हम में उन में भला कैसे होने के
पोथी को अपने खोलिए कुछ तो बिचारिए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मोहतसिब से हुई दम भर भी जो महफ़िल ख़ाली
जी मिरा जाम का शीशे का हुआ दिल ख़ाली
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
मैं ने सोचा है कि अब तर्क-ए-तमन्ना कर लूँ
ज़िंदगी जैसे गुज़रती है गवारा कर लूँ
सुरेन्द्र पंडित सोज़
ग़ज़ल
हम पर निगाह-ए-लुत्फ़ कभी है कभी नहीं
तुम ही कहो ये क्या है अगर दिल लगी नहीं
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
हम पर निगाह-ए-लुत्फ़ कभी है कभी नहीं
तुम ही कहो ये क्या है मगर दिल-लगी नहीं
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
ज़िल्लत है जो फैलाए बशर पेश-ए-दिगर हाथ
यारब न कभी हाथ का हो दस्त-निगर हाथ
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
मौजों से टकराए हैं हम तूफ़ानों से खेले हैं
इक जीने की ख़ातिर हम ने क्या क्या सदमे झेले हैं
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
हम हैं तूफ़ान-ए-हवादिस से गुज़रने वाले
हम नहीं मौज-ए-बला-ख़ेज़ से डरने वाले
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
मौजों से टकराए हैं हम तूफ़ानों से खेले हैं
इक जीने की ख़ातिर हम ने क्या क्या सदमे झेले हैं
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया किसी की याद हसरत मौत की यारो
इन्हीं दो-चार पर है अब मदार-ए-ज़िंदगी यारो