आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "पतंग-ए-मफ़्तूँ"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "पतंग-ए-मफ़्तूँ"
ग़ज़ल
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
चाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
सर-गर्म-ए-सफ़र हूँ मैं तिरे दश्त में कब से
मुझ को मिरी मंज़िल का पता क्यूँ नहीं देता
इब्न-ए-रज़ा
ग़ज़ल
मैं कि ख़ुद राह में भूल आई हूँ असबाब-ए-सफ़र
कोई मंज़िल का पता पूछ रहा है मुझ से