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ग़ज़ल
पेड़ पत-झड़ में लहू रोते हैं अफ़्सुर्दा न हो
शाख़ में नम है तो फिर मौसम-ए-गुल दूर नहीं
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
गले लग कर मैं रोया था सभी पेड़ों से पत-झड़ में
सो मुझ से गुफ़्तुगू करने लगे अश्जार चुपके से
मोहम्मद ओवैस
ग़ज़ल
मजीद अमजद
ग़ज़ल
चूने के काग़ज़ों पे झडें हैं जो अपने शेर
यानी कि आ रही है दिवाले की शायरी