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ग़ज़ल
बड़े दर्शन तुम्हारे हो गए राजा की सेवा से
मगर मन का पनपना चाहते हो तो करो पुन भी
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
बहुत सी ख़्वाहिशों को मैं पनपने ही नहीं देता
मगर उन की निगाहों में सोयम्बर देख लेता हूँ
साक़ी फ़ारुक़ी
ग़ज़ल
सुनहरी अहद-ए-माज़ी की रिवायत हम से थी लेकिन
फ़क़त दीमक लगा पन्ना मिरे हिस्से में आया है
कहकशाँ तबस्सुम
ग़ज़ल
नाम लिक्खा फिर से हम ने एक पन्ने पर तुम्हारा
अब वही पन्ना तुम्हीं से हम छुपाए जा रहें हैं
साहेब श्रेय
ग़ज़ल
जाने कैसे ऐसे वैसे आगे बढ़ते जाते हैं
पास से जा कर किस ने देखा 'बद्र' पनपने वालों को
बद्र वास्ती
ग़ज़ल
लौट कर देखेंगे उस के आगे उस ने क्या लिखा
डाइरी में उस की इक पन्ना मुड़ा छोड़ आए हैं