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ग़ज़ल
सामना परतव-ए-ख़ुर का करे शबनम कैसे
ज़ोर लगता है बहुत ख़ुश्क को तर होने तक
सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद
ग़ज़ल
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
हुबाब आ कर बने हर सम्त से बुलबुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
हवा में जब उड़ा पर्दा तो इक बिजली सी कौंदी थी
ख़ुदा जाने तुम्हारा परतव-ए-रुख़्सार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
हो जाए न परतव से तिरे कौन-ओ-मकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
परतव-ए-ख़ुर्शीद-ए-आलम-ताब इधर भी इक नज़र
देर क्या है अब तो मैं तेरे मुक़ाबिल हो गया