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ग़ज़ल
निगाह-ए-पर्दा-कुशा का कमाल क्या कहना
जहाँ जहाँ वो छुपे उस ने जा के देख लिया
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
कार-आराई-ए-सई-ए-शौक़ है पेश-ए-नज़र
वर्ना सोचो जुम्बिश-ए-पर्दा-कुशा क्या चीज़ है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
पर्दा-ए-हुस्न-ए-ज़ात में अंजुमन-ए-सिफ़ात में
मेरे सिवा है और कौन सीना-ए-काएनात में
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
दिल को तौफ़ीक़-ए-ज़ियाँ हो तो ग़ज़ल होती है
ज़हर-ए-ग़म बादा-चुकाँ हो तो ग़ज़ल होती है