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ग़ज़ल
बयाबान-ए-फ़ना है बाद-ए-सहरा-ए-तलब 'ग़ालिब'
पसीना तौसन-ए-हिम्मत तो सैल-ए-ख़ाना-ए-जीं है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शाह नसीर
ग़ज़ल
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
बहुत सरशार था अपने सरासर जोश में दरिया
तमांचे मौज के खाए तो आया होश में दरिया