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ग़ज़ल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
मैं भी उन्हें पहचान रहा हूँ ग़ौर से देखो बादा-कशो
शायद शैख़-ए-हरम बैठे हैं वो जो कोने वाले हैं