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ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ख़त्म होती हैं वहाँ अपनी निगाहों की हदें
कहीं सूरज भी पहाड़ी में ढला करता है
अज़ीमुद्दीन साहिल साहिल कलमनूरी
ग़ज़ल
बाग़-ए-जिनाँ कौसर का किनारा या कि पहाड़ी तूबा की
ख़्वाब की आँखों से क्या क्या दीदार किए जा सकते हैं