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ग़ज़ल
जा पहुँचूँगा तख़्त-ए-मुअल्ला तक अपनी फ़रियाद लिए
दस्त-ए-ख़ास से लिखवा कर इक नया मुक़द्दर लाऊँगा
सादिक़
ग़ज़ल
अपनी हिम्मत ही से पहुँचूँगा सर-ए-मंज़िल-ए-शौक़
लूँ सहारा मैं किसी का मुझे मंज़ूर नहीं
दर्शन सिंह
ग़ज़ल
वही मौजें जो मुझ को खींच कर लाई हैं तूफ़ाँ में
उन्हें मौजों के साथ इक रोज़ में पहुँचूँगा साहिल पर
अनीस अहमद अनीस
ग़ज़ल
जा ही पहुँचूँगा कभी मंज़िल पे में
जज़्बा-ए-उल्फ़त पर-ए-पर्वाज़ है