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ग़ज़ल
उल्फ़त के नए दीवानों को किस तरह से कोई समझाए
नज़रों पे लगी है पाबंदी दीदार की बातें करते हैं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
तिरे आज़ाद बंदों की न ये दुनिया न वो दुनिया
यहाँ मरने की पाबंदी वहाँ जीने की पाबंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लब पे पाबंदी तो है एहसास पर पहरा तो है
फिर भी अहल-ए-दिल को अहवाल-ए-बशर कहना तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
धरी रह जाएगी पाबंदी-ए-ज़िंदाँ जो अब छेड़ा
ये दरबानों को समझा दो कि दीवाने बहुत से हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
वहाँ हैं हम जहाँ 'बेदम' न वीराना न बस्ती है
न पाबंदी न आज़ादी न हुश्यारी न मस्ती है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
दिल शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
यहीं तय्यार हैं जो कुछ कहो जो हुक्म फ़रमाओ
हमारे जुर्म पर पाबंदी-ए-रोज़-ए-जज़ा क्यूँ हो
शौकत थानवी
ग़ज़ल
ये माना नंग-ए-पाबंदी से क्या आज़ाद को मतलब
मगर वो शर्म-ए-आज़ादी से भी आज़ाद होता है