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ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सुर्ख़ी के सबब ख़ूब खिला है गुल-ए-लाला
आरिज़ में लबों में कफ़-ए-दस्त ओ कफ़-ए-पा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
बोलूँ तो सर से पा तक हसरत की दास्ताँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जिन को रह के काँटों में ख़ुश-मिज़ाज होना था
वो मक़ाम-ए-गुल पा कर बे-दिमाग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
न रहनुमा है न मंज़िल दयार-ए-उल्फ़त में
क़दम उठाते ही ख़िज़्र-ए-शिकस्ता-पा तो मिला
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
हिना तेरे कफ़-ए-पा को न उस शोख़ी से सहलाती
ये आँखें क्यूँ लहू रोतीं उन्हों की नींद क्यूँ जाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
हम-नफ़स-ओ-हबीब-ए-ख़ास बनते हैं ग़ैर किस तरह
बोली ये सर्द-मेहरी-ए-उम्र-ए-गुरेज़-पा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
वो मिटा देंगे हमारी अज़्मतों का हर निशाँ
चाँद-तारों से हमारा नक़्श-ए-पा ले जाएँगे