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ग़ज़ल
सड़क पर जो गुज़रता है लगा देता है दो चाँटे
सला-ए-आम है मेरी पिटाई देखते जाओ
किशन लाल ख़न्दां देहलवी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
कुछ ऐसे भी तो हैं रिंदान-ए-पाक-बाज़ 'जिगर'
कि जिन को बे-मय-ओ-साग़र पिलाई जाती है