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ग़ज़ल
किसी ने जिस तरह अपने सितारों को सजाया है
ग़ज़ल के रेशमी धागों में यूँ मोती पिरोते हैं
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
उस ने बाग़ से जाते जाते मौसम-ए-गुल भी बाँध लिया
'शाज़' को देखो दीवाने हैं बैठे हार पिरोते हैं
शाज़ तमकनत
ग़ज़ल
मर ही जाएँगे तिरी याद में यूँही किसी रोज़
दुख के आँचल में कहीं शे'र पिरोते हुए हम
अदनान मुनव्वर
ग़ज़ल
तिरे उश्शाक़ कार-ए-दस्त को करते हैं आँखों से
गुहर आँसू के किस सिफ़्फ़त से मिज़्गाँ में पिरोते हैं
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
जो कुछ भी करें 'ज़र्रा' ये हाथ न थर्राएँ
पत्थर भी उठाते हैं मोती भी पिरोते हैं
सुश्रुत पंत ज़र्रा
ग़ज़ल
सोच-नगर के कोलाहल से बच जाते तो सोते भी
सो जाते तो सपनों के मन चाहे हार पिरोते भी